82वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य मेे विशेषांक

82वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य मेे विशेषांक

Special issue on the occasion of 82nd birthday

Special issue on the occasion of 82nd birthday

सहज, शांत व  सरलता की मूर्त रूप मे अभय मुनि

चंडीगढ, 5 दिसंबर: Special issue on the occasion of 82nd birthday: मुनि उन आध्यात्मिक ज्ञानियों को कहा जाता है जो अधिकांश समय मौन धारण करते हैं या बहुत कम बोलते हैं। लेकिन जैन मुनियों को जैन आगम तथा तत्सम ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान होता है। साथ ही वह मौन रहने की शपथ भी लेते हैं वे मुनि कहलाते हैं। ऐसे ही हमारे प्यारे अभयमुनि है। मुनिश्री अभयकुमारजी का जीवन सहज, सरल और मिलनसार है वे मंत्रवादी है और उन्होने अपने जीवन में करोडों करोडों मंत्रों का जप ही नही किया आलेखन भी किया है। वे कवि है उनकी अनेक कविताओं की पुस्तके प्रकाशित भी हुइ्र्र है। उनका पूरा जीवन श्रमशील रहा है। 

मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक के साथ अनेको अनेक वर्ष साथ रहने के बावजूद भी इतने सेवा के प्रति निष्ठा, वाणी मे कोमलता, व्यवहार मे सादगी हमेशा ही उनके आसपास दायर बनाकर रखती है। 

मुनिअभयकुमारजी का जन्म राजस्थान के सरदार शहर मे पिता सुमेर मल जी और माता भवरी देवी की कोख से हुआ। अभयमुनि का जन्म मध्यवर्गीय परिवार के भरे पूरे 26 से 28 सदस्यों के बडे परिवार मे हुआ। चार भाई-बहनों मे तीसरे नंबर के अभयमुनि जी थे। इन्होने अपनी आरंभिक शिक्षा सरदार शहर से ही प्राप्त की और मैट्रिक तक की परीक्षा उतीर्ण की। 

अभयमुनि कठिन जीवन यापन के बावजूद भी ये बहुत ही परिश्रमी और कार्य के प्रति जुनून इनका देखते ही बनता था। बचपन से  ही सेवाभावी की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। अभयमुनि ने करोडों करोडों मंत्रो को कंठस्थ किया है। इसके अलावा करोडो मंत्रो का लेखन जारी है। 

आपकी अत्यंत तीव्र बुद्धी जिस भाषा का अध्ययन शुरू किया कुछ ही समय में उसमें प्रवीणता हासिल कर ली और हिंदी, संस्कृत,राजस्थानी आपके द्वारा जैन आगम, वेद, उपनिषद, पिटक, व्याकरण, न्याय इतिहास आदि का गहन अध्ययन किया।

आपने श्री ने विभिन्न रसों के माध्यम से जैन धर्म के प्राणभूत अहिंसा, सत्य आदि मूलव्रतों एवं स्याद्वाद, अनेकान्त, कर्मवाद आदि दार्शनिक विषयों का प्रतिपादन किया। बिना आचार के ज्ञान पंगु है, इस सत्य-सत्य के आप ज्ञाता थे। इसलिए आप वही कहते और लिखते थे जिसमें आप अपने आचार के स्वर देते थे। आपकी संयमनिष्ठा अद्भुत थी। संयम को जीना और उसी का प्रचार-प्रसार करना आपके जीवन का मूल मंत्र था।

अभयमुनि को बीमारी ने इस कदर से जकडा हुआ है बावजूद इसके काफी समय से अस्वस्थ होने के बावजूद भी मुनिअभय कुमार जी लेखन कार्य अभी भी जारी है। दृढ निश्चिय व कार्य के प्रति जनुनू की भावना अभी भी युवाओ को मार्गदर्शक करती है। 

पिछले काफी समय से लगभग 10 ऑपरेशन जिनमे चंडीगढ पीजीआई मे 6 ऑपरेशन, लुधियाना मे 1, अहमदाबाद मे 1 हार्ट, मस्तिष्क के अलावा और भी कई खतरनाक ऑपरेशन से अभय मुनि गुजर चुके है।  

इतनी उधेड आयु के बाद भी अभय मुनि की की लेखनी रुकी ही नहीं, उनमें विचारों का निरंतर प्रभाव चलता जा रहा है। जो उन्हें सुनता वह मंत्रमुग्ध हो जाता था।

अभय मुनि का ज्ञान सदेव भक्तों को अपने संदेह ,जिज्ञासा एवं शंकाओं के समाधान हेतु आकर्षित करता है। प्रश्नोत्तर के संवाद पूर्ण प्रहार में जहा एक ओर किशोर होते है तो वही दूसरी ओर प्रकांड विद्वान् भी चूँकि मुनि श्री प्रश्नकर्ता को महत्व देते थे और प्रश्न को सम्मान। अत: छोटे बच्चे, बुजुर्ग व नौजवान प्रश्न कर्ता निसंकोच अपनी जिज्ञासाओं के समाधान हेतु उन्हें घेरे रहते थे। वे प्रश्नकर्ता को उसके स्तर का उत्तर देकर संतुष्ट करते रहते।